मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

Samagra Swaraj.blogspot.com

Samagra Swaraj.blogspot.com
समग्र स्वराज विद्यालय / स्वराज जिज्ञासु संघ
या जो भी नाम पसंद हो
घोषणापत्र
1.      हम भारत देश और राष्ट्रीयता को स्वीकार करते हैं| विवादस्पद क्षेत्रीय मुद्दे (कश्मीर, नार्थ-ईस्ट इत्यादि) आपसी सहमति से हल होंगे| 
2.      हम लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में विश्वास रखते हैं|
3.      हम बड़े स्तर पर दलगत राजनीति में परिवर्तन की आशा रखते हैं|
4.      भारतीय संविधान वर्तमान में भारत के नागरिक जीवन का दिशा निर्देशक है, जिसमे निरंतर संशोधन आवश्यक है|
5.      न हम धर्मविरोधी हें, न धर्म निरपेक्ष, ना ही नास्तिक। हम धर्मों की विविधता को स्वीकार करने वाले हैं। साथ ही इस बात के पक्षधर हैं कि हर धर्म के अनुयायी की जिम्मेदारी है कि वह दूसरे धर्म के मानने वाले के साथ सहजीवन हेतु स्वयं अपने आप में परिवर्तन करे। समन्वय-सामंजस्य के लिए जो भी जरूरी हो करे, न कि अपनी परंपरा या विश्वास की पेंच फंसाए।
6.      हम प्रेम और आत्मीयता के विकास के पक्षधर हैं| आत्मीयता घनीभूत होकर प्रेम और विरल होकर वैराग्य हो जाती है|
7.      जीवन समकालीन निरंतरता में चलता है, इसलिए हम निरंतरता और समकालीनता दोनों का अभ्यास करते हैं|
8.      आचारहीन विचार और विचारहीन आचार खतरनाक होता है, अविश्वसनीय होता है| अतः हम आचार एवं विचार दोनों में समन्वय के पक्षधर हैं|
9.      हम किसी भी राजनैतिक या आर्थिक मॉडल के पक्षधर नहीं हैं| इसकी जगह हम सिद्धांतों और नीतियों के प्रस्तावक हैं|
10.   हम भारतीय और यूरोपीय दोनों प्रकार की पद्धतियों के पक्षधर हैं और नितांत व्यक्तिवादी ध्रुवीकरण का विरोध करते हैं|
11.   हम मानवीय पहचान के सभी प्रकारों का सम्मान करते हैं और उनके बीच पारस्परिकता, पूरकता और अनुकूलन के पक्षधर हैं| यदि कोई पहचान या उसका अंश इसका विरोधी है तो वह हमें मान्य नहीं है|
12.  अपने को स्वयं स्वामी, विजेता, निर्णायक, विशिष्ट मानने वाली पहचान और उस आधार पर दूसरे पर अपनी बात या इच्छा थोपना हमें मान्य नहीं है।
13.  चूंकि परिवार एक शिशु को पैदा ही नहीं करता, वह रक्षा न करे तो शिशु मर जाए अतः पूर्ण वयस्क होने तक परिवार का निर्णय मानना जरूरी है।

14.   हम व्यक्ति के विकास में परिवार को बाधक नहीं मानते, ना ही परिवार विहीन किसी काल्पनिक समाज की बात करते हैं। परिवार का जैसा जहां जो ढांचा हो, उसमें देश-काल सापेक्ष संशोधन जरूरी है नकि परिवार विहीनता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.